


गौरैया सिर्फ एक चिड़िया नहीं बल्कि हमारे पर्यावरण का बैरोमीटर है। अगर ये गायब हो रही है तो समझिए कि प्रकृति के साथ कुछ गलत हो रहा है। इनका रहना जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बेहद जरूरी है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के एक अध्ययन के अनुसार आंध्र प्रदेश में घरेलू गौरैया की आबादी 88 फीसदी तक कम हो गई है। केरल, गुजरात, राजस्थान जैसे राज्यों में यह 20 फीसदी तक कम हो गई है। इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एग्रीकल्चरल साइंस के अनुसार पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों, शहरों और यहां तक की ग्रामीण क्षेत्रों में पक्षी विज्ञानियों ने गौरैया की आबादी में बहुत तेजी से गिरावट देखी है।
आईसीएआर के अनुसार भारत के तटीय क्षेत्रों में गौरैया की आबादी 70 से 80 फीसदी घट गई है। इसका प्रमुख कारण है तेजी से बढ़ता शहरीकरण, आधुनिक निर्माण शैली और पेड़ों की कटाई के कारण गौरैया के लिए घोंसला बनाने की जगहें कम हो रही हैं। मोबाइल टावरों से निकलने वाला विकिरण, बढ़ता प्रदूषण, कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग और अन्य बड़ी पक्षी प्रजातियों के साथ प्रतिस्पर्धा भी इसकी घटती संख्या के कारण हैं। इसके अलावा शहरी और अर्धशहरी क्षेत्रों में लैंडफिल के विषाक्त रासायनिक कचरे ने गौरैया सहित कई पक्षी प्रजातियों को बहुत नुकसान पहुंचाया है।